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Showing posts from January, 2019

इक दिन

इक दिन बारिश हुई और मैं भीगा था उस के पानी में घर का पानी बाहर गली में निकालते हुए क्यों कि बारिश बहुत हुई और घर के सेहन में पानी बहुत खड़ा हो गया था

मैं ज़िंदगी से बहुत थक चुकी हूँ

मैं ज़िंदगी से बहुत थक चुकी हूँ मुझसे ये ज़िंदगी संभाली नहीं जाती मैं रोज़ आँखों में सुर्मा डालती हूँ लेकिन मेरी आँखों से लाली नहीं जातीगई

कहीं आॶं या फिर जाॶं, सेल्फी लेता हूँ

कहीं आॶं या फिर जाॶं, सेल्फी लेता हूँ मैं जो भी गुल खिलाॶं, सेल्फी लेता हूँ हुसूल है जन्नत का, माँ बाप की ख़िदमत पाॶं उनके जब दबाॶं, सेल्फी लेता हूँ सफ़ाई में दाँतों की, चाहे हफ़्ते गुज़ार दूं पेस्ट बरशश पे जब लगाॶं, सेल्फी लेता हूँ बीवी हो मतमन मेरी, पक्के सबूत से खाना जो दोस्तों में खाॶं, सेल्फी लेता हूँ सलाम लूं या ना लूं, अज़ीज़-ओ-अका़रिब से मगर फंक्शन में जब भी जाॶं, सेल्फी लेता हूँ फ़िक्र आख़िरत के लिए करता हूँ, टैग सभी दोस्त जनाज़ा जब भी कोई उठाॶं, सेल्फी लेता हूँ

पता नहीं किया बात है "इस" में???

पता नहीं किया बात है "इस" में??? कि "इस" के बन दिल कहीं लगता ही नहीं ना कम्पयूटर में कोई दिलचस्पी है और ना ही मोबाइल के मैसिजज़ में कोई लगाॶ मैं ये बात अच्छी तरह से जान चुका हूँ कि अब मुझे "उस" की कमी बहुत शिद्दत से महसूस होती है सिर्फ मुझे ही नहीं मेरे सब घर वालों को भी मेरे दिल की ख़ाहिश है कि अब जितनी जल्दी भी हो सके वो मेरे घर में आ जाये ए काश कोई जा कर ये सब कुछ "बिजली" से कह दे

कोई तो श्रम होती है , कोई तो हया होती है

कोई तो श्रम होती है , कोई तो हया होती है अपने मुल्क से शरीफ़ों क्या ऐसे वफ़ा होती है साहिब इक़तिदार के ज़रा, कमालात तो देखिए हो जाती है सफ़ैद वो, आमदन जो स्याह होती है क़ौल से मुकर जाएं तोझोट ना जानिए उनकी सियासत की ये भी इक, अदा होती है यहां पिदर पलते हैं फ़रज़न्दों के माल पर, ऐसी कफ़ालत दुनिया में यारो कहाँ होती है वफ़ा-शिआर हैं चमचे तेरे, ए नवाज़ मगर नाम इअहतसाब पर क्यों रूह उनकी फ़ना होती है शोला बयानीयाँ तेरे दरबारीयों की, क्या कहीए परझोट की भी साहिब कोई इंतिहा होती है गर ज़मीर है ज़िंदा तेरा, तो ख़ुदारा जवाब दे किस माल पे पल कर तेरी नसलें, जवाँ होती है लूट ले सब कुछ पर ए बे-ख़बर! याद रख बड़ी ज़ालिम है वो, जोरब की क़ज़ा-ए-होती है कोई तो श्रम होती है, कोई तो हया होती है अपने मुल्क से शरीफ़ों क्या ऐसे वफ़ा होती है

मुझे ऐसा कोई कमाल दे बाबा

मुझे ऐसा कोई कमाल दे बाबा जो हर आफ़त को टाल दे बाबा तनख़्वाह के पैसों से काम नहीं चलता मेरी भी लाटरी निकाल दे बाबा मन में कोई हसरत ना रहे मुझको इतना माल दे बाबा मुझसे कोई प्यार नहीं करता ये बात मेरे ज़हन से निकाल दे बाबा घर-वाली के हाथ ना लग जाएं बाहर वाली के ख़त सँभाल दे बाबा असग़र की सारी मांगें पूरी कर दे ना कल पे उनको टाल दे बाबात

अगर अपनी भी किसी से यारी होती

अगर अपनी भी किसी से यारी होती इस के लिए हाज़िर जान हमारी होती किसी रेडीयो के मेज़बान होते अगर फिर हमारी भी हर बात प्यारी होती जो मेरी सना में कुछ ना कहता नशर उस की बात ना सारी होती ख़ुशामद करने वाले तीन बार आते शो में इन पे ना कोई पाबंदी जारी होती असग़र जैसे लोगों से ज़्यादा बात ना करता इस तरह से बड़ी धूम हमारी होती

सुना है कि नफ़रत मुहब्बत की पहली कड़ी होती है

सुना है कि नफ़रत मुहब्बत की पहली कड़ी होती है मैं जहां जाता हूँ वो पीछे खड़ी होती है मुझ जैसे शरीफ़ आदमी को बदनाम करने की ख़ातिर उसने रोज़ कोई नई कहानी घड़ी होती है उसे अपने दिल में ऐसे बसा रखा है जैसे फ्रे़म में कोई तस्वीर जुड़ी होती है सच्ची मुहब्बत करने से पहले ज़रा सोच लेना इस तरह के कामों में जुदाई बड़ी होती है सोचा था हम भी किसी हमउमर को छेड़ेंगे फिर ख़्याल आया ऐसे कामों में पिटाई बड़ी होती है हुस्न की अदालत में जब पेश होता है असग़र इस के लिए वो बड़ी नाज़ुक घड़ी होती है

जिसे मिलने की दिल में बेताबी है

जिसे मिलने की दिल में बेताबी है इसी केपास मेरे दिल की चाबी है मुहब्बत के दुश्मनों से इतना पूछना है किसी से प्यार करने में क्या ख़राबी है दिल चुराने वाले की ये निशानी है उसकी आँखें नीली सूट गुलाबी है शायद इस तरह ख़त का जवाब मिल जाये चिट्ठी के साथ लिफ़ाफ़ा भी जवाबी है अपने रूप का उसे बड़ा ग़रूर रहता है चाल उस की शराबी नख़रा नवाबी है

तो क्या जाने हम तेरे इंतिज़ार में खड़े हैं

तो क्या जाने हम तेरे इंतिज़ार में खड़े हैं ना जाने तू कब आएआसी सोच में पड़े हैं और किसी से इतना प्यार नहीं जितना तुमसे वर्ना इस दुनिया में अपने भी यार बड़े हैं हमारे चेहरे की जानिब ना देखो सनम हमारे अंदर झाँको के कितने गले सडे हैं हमें भी इस जहां में जीने का हक़ है आप क्यों असग़र ग़रीब के पीछे पड़े हैं

उनकी बातें मीठी हैं मिठाई की तरह

उनकी बातें मीठी हैं मिठाई की तरह और वो गौरी चिट्टी हैं रस मिलाई की तरह जिस किसी को देता हूँ अपना बीमार दिल वही उस का ख़ून बहाता है क़साई की तरह दूर-ए-हाज़िर में बड़ा मुश्किल है इशक़ करना माडर्न मुहब्बत लगती है रुस्वाई की तरह कल एक साहिबा की नज़र की अपनी ताज़ा ग़ज़ल वो बोली असग़र तुम हो मेरे भाई की तरह

चाय में पति ना कम ना ज़िया दह हू

चाय में पति ना कम ना ज़िया दह हू अलिफ़-ओ-रद्द-ओ-ध् की मकद उर थोड़ य सीज़ या दह हू र-ओ-टी गोल बनाता हू नवा ले तोड़ कर जो मेरे मुँह में डॉ ले जिस चीज़ को चबाने की ज़हमत ना हू मुझसे ओ- हिबा दाम गिरा ऐंड र मैन पीस कर मुझको दे ओ- ह मुझको हर हफ्ते सिनेमा लेकर जाये मैं जो बेसबब र-ओ-ठ जाओ ं इस से मुझको मना ने के लिए-ओ-ह चने की दा लुबना डॉ ले अलिफ़-ओ-रसा थ थोड़ इसा मीठा भी ख़ुद वो बी ऐम डब्लयू रखे और मुझको कर-ओ-लाद लौह दे जब मैं शॉपिंग पे जाओ ं पैसा पानी की तरह बहाओ ं अलिफ़-ओ-र-ओ-ह मुझको देख देख मुस्कुरा ताजा ए अलिफ़-ओ-र जब में इस को देखो ं ओ- हश्र मा जाये बा डी उस की सलमान ख़ान जैसी हू र-ओ-मैंस शाह रुख़ जैसा हू बदन उस का ढीला ढाला नर्म-रौ ई जैसा हू लाल शरबती सी आँखें हूं छोटी छोटी मूँछें हूं प्यार जब मुझको उसपे आए इस का हाथ पकड़ कर धीर य से इस के कान में कहूं जान कुछ खाने को मिलेगा मेरे आईड यल ख़ा निसा मह शौहर

वर्क परमिट पे हम लोग बुलवाए जाते हैं

वर्क परमिट पे हम लोग बुलवाए जाते हैं कम तनख़्वाह पे हमें लोग टर्ख़ाए जाते हैं हमारे मसाइब का किसी को एहसास नहीं वो लोग हमें सब्ज़-बाग़ दिखाए जाते हैं सुना था मरने के बाद आमाल का सिला मिलता है मगर हम जीते-जी गुनाहों की सज़ा पाए जाते हैं ज़ुलम सह रहे हैं और बग़ावत भी नहीं कर सकते वतन भिजवाने की धमकी देकर डराए जाते हैं फ़ोन पे जब भी बात होती है हम वतनों से वर्क परमिट पे ना आना सब ही को समझाए जाते हैं

इस बार ना रास आई जवानी मुझे

इस बार ना रास आई जवानी मुझे मिलती नहीं शादी के लिए ज़नानी मुझे चटपटे खा नीला के रुख देते हैं मगर पीने को नहीं देते पानी मुझे मैं नए कपड़े पहनूँ भी तो कैसे इस घर में मिलती नहीं क़मीज़ पुरानी मुझे किसी हसीं सूरत पे नज़र पड़ती है जब वो लगती है हूर आसमानी मुझे दस साल दस माह दस दिन क़ैद बा मशक़्क़त इस के प्यार की ये मिली है निशानी मुझे

क्या हुआ जो वो देते हमें दीदार नहीं

क्या हुआ जो वो देते हमें दीदार नहीं हम भी उनकी दीद के बीमार नहीं जो बुरे वक़्त में तन्हा छोड़ जाएं हम ऐसे बेवफ़ा यार नहीं वो एक-बार कोशिश कर के तो देखें हमारे शहर में आना कोई दुशवार नहीं उसे प्यार करना मेरी मजबूरी है इस दिल पे मुझे कोई इख़तियार नहीं मैं क्या जानों ये चाहत किया है मेरा दिल किसी की मुहब्बत में गिरफ़्तार नहीं मग़रूर लोग मुझे नहीं बहाते मुझे ऐसे लोगों से सरोकार नहीं कभी अपने असग़र को मिलने चले आओ हमारे रास्ते में कोई दीवार नहीं

देखना तुझे अपनी आँखों में बिसालों गा

देखना तुझे अपनी आँखों में बिसालों गा तेरी ख़ामोश मुहब्बत सीने में छिपा लूं गा प्यार में कभी मुझे आज़मा कर देख लेना तुम्हारी ख़ातिर में ज़हर भी खालोंगा रातों को तेरे ख़ाबों में जा-जा कर मैं तेरे दिल में जगह बनालूंगा तेरे दिल को अमानत की तरह रखूँगा जब तू मांगेगी कोई बहाना बनालूंगा

आजकल शेअर कोई सूझता नहीं

आजकल शेअर कोई सूझता नहीं इसी लिए दाद कोई मगर देता नहीं क्या लिख रहे हैं क्या पढ़ रहे हैं हम सठिया गई है बढी दिल मगर मानता नहीं कहने को तो लिखारी हम कहलाते हैं क्या लिखा है ख़ुद को भी आसान मगर लगता नहीं घंटों सर खपाते हैं एक मिसरा लिखने में दूसरे तक आते आते कोई तुक मगर बनता नहीं अजी पढ़ लीजिए साहिब हमारी भी कभी नादिर किताब है मार्किट में मगर दस्तयाब नहीं जनाब कल ही की बात है महफ़िल मुशायरा में अपनी बारी पर हमें कोई सुनने को मगर मिलता नहीं

कल कम्पयूटर लैब से हुआ जब मेरा गुज़र

कल कम्पयूटर लैब से हुआ जब मेरा गुज़र कुछ लड़के लिख रहे थे, जनाब कम्पयूटर मुख़्तसर कि स्क्रीन पर प्रोग्राम था फैला नील के साहिल से लेकर ताबख़ाक काशग़र

हम तो करेंगे प्यार चाहे मुसीबत ही सही

हम तो करेंगे प्यार चाहे मुसीबत ही सही जो करते हैं नफ़रत उनकी फ़ित्रत ही सही तुम देखना नज़रें ख़ुद बख़ुद मिल जाहें गी पहले दिल की दिल से निसबत ही सही इस का प्यार पा कर ही हमने दम लेना हा है इस की क़ीमत चाय ज़ीस्त ही सही मैं और मेरा दिल फिल्में बहुत देखतेहैं एक-आध फ़िल्मी गीत दम-ए-रुख़्सत ही सही

इतना काला धन है कि सँभाल नहीं सकता

इतना काला धन है कि सँभाल नहीं सकता उसे बैंक में भी डाल नहीं सकता हर माह झूटे बहानों का सहारा लेकर ज़्यादा देर टैक्स वालों को टाल नहीं सकता पहले ही कितने ग़ैर क़ानूनी कामों में  मुलव्वस  है अब  मज़ीद  कोई और शौक़ पाल नहीं सकता इस के सर पे दौलत का भूत  तारी  है इतना धन है कि उसे सँभाल नहीं सकता लक्ष्मी आई तो नींद हुई पराई ये मुसीबत किसी और के सर डाल नहीं सकता

दिल की बातें किसी से बोलते नहीं हैं

दिल की बातें किसी से बोलते नहीं हैं पूल  किसी दोस्त के खोलते नहीं हैं जानते हैं दौलत अपने मुक़द्दर में नहीं इसी लिए जेबों को हम टटोलते नहीं हैं किसी बेवफा की याद में रो-रो कर अपने अनमोल मोतीयों को रोलते नहीं हैं मुहब्बत कि सामने दुनिया की दौलत किया है मुहब्बत को दौलत से तौलते नहीं हैं ख़ुदा अपने प्यारों का  इमतिहान  लेता है इसी लिए कड़े वक़्त में डोलते नहीं हैं दोस्तों की खूबियां याद रखते हैं सदा इन कि ऐबों को टटोलते नहीं हैं जानते हैं कि चांद तक  रसाई   मुम्किन  नहीं असग़र इसी लिए चकोर की तरह परों को तौलते नहीं हैं

जिस इन्सान को किसी से प्यार नहीं होता

जिस इन्सान को किसी से प्यार नहीं होता दुनिया में इस का कोई ग़मख़वार नहीं होता जो अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं ऐसे लोगों का कोई यार नहीं होता हम उस की हसीं सूरत के ग़ुलाम होगे वो कहती है ग़ुलामों का अब कारोबार नहीं होता कई सालों से चला रहा हूँ नज़रों कि तीर मगर एक भी किसी मन के पार नहीं होता जो हर किसी से  नफ़रत  करते फिरे ऐसे कमज़र्फ़ का कोई यार नहीं होता जो अपने आपसे दोस्ती कर ले वो किसी  माशूक़  कि हाथों  ख़ार  नहीं होता ऐसे डरे हैं मुहब्बत की दुनिया से हम असग़र अब किसी के  इशक़  में दिल गिरफ़्तार नहीं होता

हैं कच्चे ऐसे नादान हमसे बीई इस जग में

हैं कच्चे ऐसे  नादान  हमसे बीई इस जग में आज़माऐ होवं को जो आज़माते हैं बार-बार हर बार  यक़ीन  होता है कि बदल जाऐंगे वे बेला बेओत भी निकले हैं कभी जिस्म में  हलूल  होजाने के बाद? और जिस किसी ने कहा था कि कुत्ते की दम रहती है  टेढ़ी  हज़ार बरस बाद भी शख़्स  तेआ वे वाक़ई कोई बहुत ही अफ़लातून जैसा

दावत-ए-इशक़ का एहतिमाम करते रहे

दावत-ए-इशक़ का एहतिमाम करते रहे दिन रात मुसलसल काम करते रहे वो आएं हमारे घर ख़ुदा की क़ुदरत हम कुछ ऐसा इंतिज़ाम करते रहे दिन रात मुसलसल काम करते रहे दावत-ए-इशक़ का एहतिमाम करते रहे

आपा के मुर्गे को जब कर दिया मैंने क़ुर्बान

आपा  के मुर्गे को जब कर दिया मैंने क़ुर्बान दोस्तों में बढ़ गई मेरी शान मुर्ग़ा करता था सबको परेशान बिना कर उसकी  बिरयानी  ,कर दिया मैंने सबको हैरान मुर्गे के नख़रे थे दो हज़ार शोर करता रहता था वो बार-बार मुझे नहीं था इस से कोई  सरोकार बस मुझे  बिरयानी  की प्लेट थी  दरकार आपा  का जवाब तुमने तो कर दिया मेरे मुर्गे को क़ुर्बान बिरयानी  बना कर सबको कर दिया हैरान मगर ये नहीं सोचा कि अब कोई सह्र में नहीं देता बाँग हालाँकि वो फ़रिश्तों को देखकर देता है बाँग तुम्हें तो नहीं इस से कोई  सरोकार  है मगर मुझे इस से बड़ा प्यार है इस की मासूम अदाऐं और अंदाज़ मेरे दिल-ए-पर करती हैं असर-अंदाज़ तुमने जब से इस पर बुरी नज़र डाली है मैंने उसकी बढ़ा ली रखवाली है

ये जो बाद-ए-सबा है साहें

ये जो  बाद-ए-सबा  है साहें ये बड़ी कज-अदा है साहें मेरे यार का पैग़ाम नहीं लाती करती ना वाअदा वफ़ा है साहें कई सालों सयासी को सलाम इस बात सेवह  ख़फ़ा  है साहें अगर में एक  कूचा  हता हूँ उसे एतराज़ किया है साहें मैं किस के लिए बाल बनाऊँ जब महबूब ही जुदा है साहें

हिजर ने आतिश भर दी

हिजर ने आतिश भर दी क्या कर लेगी सर्दी हद में रहने वालों तुमने भी हद कर दी हम क्योंकर जी पाए पूछते हैं  बेदर्दी माहीवाल के जीते जी सोहनी क्यूएं मर दी अब क्या फ़र्क़ पड़ता है गर्मी पड़े या सर्दी हिजर ने आतिश भर दी क्या कर लेगी सर्दी

इंटरनैट

वो जो रहता था दिल में ऑनलाइन दुखने लगा सबक़ मोहब्बतों का यार-ओ- फेसबुक पर बिकने लगा रिश्तों का बाज़ार अब वाट्स आप पे लगने लगा जो हैं कुछ सोफ़सटी कीटड पिक्चर उनका अनसटा ग्राम पे चलने लगा गोरख धंदा अनसटनट चैट का अलग से ही पलने लगा अजब हो गया है ज़माना हर कोई इंटरनैट पे मिलने लगा